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सा नो॒ विश्वा॒ अति॒ द्विषः॒ स्वसॄ॑र॒न्या ऋ॒ताव॑री। अत॒न्नहे॑व॒ सूर्यः॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sā no viśvā ati dviṣaḥ svasṝr anyā ṛtāvarī | atann aheva sūryaḥ ||

पद पाठ

सा। नः॒। विश्वा॑। अति॑। द्विषः॑। स्वसॄः॑। अ॒न्याः। ऋ॒तऽव॑री। अत॑न्। अहा॑ऽइव। सूर्यः॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:31» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (सा) वह (ऋतावरी) उषा=प्रभातवेला (नः) हमारे (विश्वाः) समस्त (द्विषः) द्वेषी जनों को (अति) अतिक्रमण=उल्लङ्घन कराती है और (सूर्यः) सूर्य (अहेव) दिनों को जैसे (अतन्) व्याप्त होता, वैसे (अन्याः) और (स्वसॄः) भगिनियों के समान वर्त्तमान गत विगत प्रभातवेलाओं का संयोग करती है ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो वाणी अच्छे प्रकार प्रयोग की हुई सुख और अन्यथा कही हुई दुःख प्रदान करती है। जो सत्यवादी हैं, वे ही मिथ्या कहना नहीं चाहते, जैसे सूर्य समस्त मूर्त्तिमान् द्रव्यों को प्रकाशित करता है, वैसे ही यह वाणी सब व्यवहारों को प्रकाशित करती है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! सा ऋतावरी नोऽस्माकं विश्वा द्विषोऽति क्रामयति सूर्य्योऽहेवाऽतन्नन्याः स्वसॄः स्वसार इव संयनुक्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सा) (नः) अस्माकम् (विश्वाः) सर्वान् (अति) (द्विषः) द्वेष्टॄन् (स्वसृः) स्वसेव वर्त्तमानाः (अन्याः) (ऋतावरी) उषाः (अतन्) व्याप्नुवन् (अहेव) दिनानीव (सूर्य्यः) ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! या वाक् सम्यक् प्रयुक्ता सती सुखमन्यथोक्ता सती दुःखं च प्रयच्छति, ये सत्यवादिनः सन्ति त एव मिथ्या वक्तुं नेच्छन्ति यथा सूर्य्यः सर्वान् मूर्त्तान् द्रव्यान् प्रकाशयति तथैवेयं वाक् सर्वान् व्यवहारान् द्योतयति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! चांगली वाणी सुख देते व वाईट वाणी दुःख देते. जे सत्यवादी असतात ते मिथ्या वचन बोलत नाहीत. जसा सूर्य संपूर्ण मूर्तिमान द्रव्यांना प्रकाशित करतो तसेच वाणी सर्व व्यवहार प्रकट करते. ॥ ९ ॥